रविवार, 17 फ़रवरी 2008

लघुकथा - जानवर

बेजू ठाकुर के घर बढे लड़के के घर लड़की ने जन्म लिया तो ठाकुर-ठकुराईन का पोर -पोर खिल उठा .बढ़ी मांग मंगत के बाद घर के आँगन मे फूल खिला था.साथ साथ मंगली बकरी भी बिया गई .कूदता- फंदता घोलू भी घर आंगन मे जल्दी ही हिल मिल गया.लड़की की मा को बीमार थी जो स्तन मे दूध नही उतर ता था .बुढी- ठकूरईन कहती -'मंगली का एक स्तन छोरी और दूसरा बकरा पिएगा .बकरी का दूध मा के जैसा होता है '.और फिर छोरी और बकरा पालने लगे .जभी छोरी रोती तो मंगली का दूध पिला देती ।

तभी गजब हुआ ।

लड़की को न जाने कोनसी बीमार ने घेर लिया जो वह मरने जैसी हो गई .घोलू अब खुसी से कूदता फंदता नही बल्कि उदास होकर मंगली के स्तन के निचे चला जाता .इधर ठाकुर ने खूब देवी देवता , भोपा किया .पेर एक न सधा.अंत मे बढे देवरे पर हांक लगाई.भोपे ने हांक लगाई की बकरा चडेगा .डाकन की मार है .बेजू को बाहर जाने की जरुरत नही थी .घर मे जो था बकरा-घोलू .घोलू रविवार को देवरे ले जाया गया .आदेश लेकर बेजू ने देवरे मे सिर टेका और नंगी तलवार घोलू के सर रख दी .'खाचाक' से घोलू का सर अलग हो गया .इधर लड़की ने लम्बी बीमारी का साथ दे हमेशा -हमेशा के लिए अपनी आँखे मूंद ली .मंगली अभी बी दुख से मिमिया रही है .